Rajasthan ki Lokdeviya - राजस्थान की लोकदेवियां | Rajasthan History and Culture

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Rajasthan ki Lokdeviya - राजस्थान की लोकदेवियां

Hello Friends, इस पोस्ट में हम राजस्थान की प्रमुख लोकदेवियों के बारे में प्रतियोगी परीक्षाओं के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हैं। अगर आप PDF Notes Download करना चाहते हैं, तो नीचे लिंक दिया है।

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां

ज्वाला माता -

ज्वाला माता का मंदिर जयपुर के जोबनेर कस्बे में है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर माता सती का घुटना आकर गिरा था। ज्वाला माता जयपुर के कच्छवाहां वंश की खंगारोत शाखा के शासको की कुलदेवी है।


जमुवाय माता -

कच्छवाहां वंश की कुलदेवी जमुवाय माता का मंदिर जयपुर में जमवारामगढ़ नामक गांव की पहाड़ी पर है। जमुवाय माता को ही अन्नपूर्णा के नाम से जाना जाता है। यह देवी सतयुग में मंगलायू, त्रेता युग में हडवाय, द्वापर युग में बुढवाय और कलयुग में जमुवाय के नाम से जानी जाता है।
राजस्थान में जमुवाय माता के प्रमुख मंदिर जमवारामगढ़ (जयपुर), भौडकी (झुंझुनू), महरौली एवं मादनी मंढा (सीकर), भूणास (नागौर) में है।


हिंगलाज माता -

मान्यता के अनुसार माता सती का ब्रह्मरंध्र हिंगलाज में आकर गिरा था, उसी से यहां पर हिंगलाज नाम से हिंगलाज माता की पूजा की जाने लगी। इसके अलावा इसे चांगली माई के नाम से भी जाना जाता है। हिंगलाज माता का मुख्य मंदिर पाकिस्तान के बलुचिस्तान प्रांत में है। जबकि राजस्थान में बाड़मेर जिले की सिवाना तहसील में, चुरू जिले के बीदासर गांव में, सीकर जिले के फतेहपुर गांव में, जैसलमेर के लोद्रवा में और अजमेर जिले की अंराई पंचायत समिति में है।

आशापुरा माता -

यह देवी नाडौल के चौहान की कुलदेवी है। राजस्थान में आशापुरा माता के प्रमुख मंदिरों में जालौर के मोदरा गांव में, जयपुर के आसलपुर गांव में, जैसलमेर के पोकरण में है।
जालौर जिले के मोदरा गांव की आशापुरा माता को मोदरा माता / महोदरी माता और बड़े उदर वाली माता के नाम से जाना जाता है।
आशापुरा माता के उपासक हाथ में मेहंदी नहीं लगाते हैं।

स्वांगिया माता -

स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटी शासको की कुलदेवी है। स्वांगिया माता को आवड़ माता के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में स्वांगिया माता के सात प्रमुख मंदिर काला डूंगराय का मंदिर, भादरियाराय का मंदिर, घंटियाली राय का मंदिर, तेमडेराय का मंदिर, देगराय का मंदिर, तन्नोट राय का मंदिर और आईनाथ जी का मंदिर है। तनोट माता को सेना के जवानों की देवी, थार की वैष्णो देवी और रुमाल वाली देवी कहा जाता है। इस मंदिर में पूजा BSF के जवानों द्वारा की जाती है।

स्वांगिया माता

करणी माता -

करणी माता बीकानेर के राठौड़ों की इष्ट देवी तथा चारणों की कुलदेवी है। करणी माता के बचपन का नाम रिद्धि बाई था। इनका जन्म चारण वंश में पिता मेहाजी व माता देवल बाई के घर हुआ था। करणी माता की इष्ट देवी तेमड़ा जी थी।
इनका विवाह साठीका गांव के चारण देपाजी बीठू से हुआ था, लेकिन इन्होंने देपाजी बीठू से अपनी बहन गुलाब कुंवरी का विवाह करवा दिया था।
करणी माता को चूहों की देवी, आवड माता / जगत माता का अवतार कहा जाता है।
करणी माता का मंदिर देशनोक (बीकानेर) में है, जिसके मुख्य दरवाजे के पास ग्वाले दशरथ मेघवाल का देवरा है। जहां पर सावन-भादो नामक दो बड़े कढाह रखे हैं। करणी माता के मंदिर में सफेद चूहों को काबे कहा जाता है। इसके अलावा करणी माता का एक रूप चील भी है।

करणी माता

जीण माता -

सीकर के रेवासा गांव में हर्ष पहाड़ी पर जीण माता का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा हट्टड़ ने करवाया था। जीण माता को मीणों, चौहानों की कुलदेवी, शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी एवं मधुमक्खियों की देवी कहा जाता है। जीण माता का मूल नाम जवंती बाई था।
राजस्थानी साहित्य में जीण माता का 'चिरंजा' गीत सबसे लम्बा है। जीण माता के मुख्य मंदिर के पीछे तहखाने में भामरिया माता का मंदिर है, जिसके सामने पराक्रमी जगदेव पंवार का पीतल का धड़ रखा है।

आई जी माता -

आई माता सिरवी जाति की कुलदेवी है। इनका मंदिर जोधपुर के बिलाड़ा में है, जहां कोई मूर्ति नहीं है। इस मंदिर में दीपक की ज्योति से केसर टपकती रहती है, जिसका उपयोग इलाज के लिए किया जाता है। आई माता को नवदुर्गा का अवतार माना जाता है। सिरवी जाति के लोग आई माता के मंदिर को दरगाह तथा इनके समाधि स्थल को बढेर कहते है।

शीतला माता -

शीतला माता मंदिर का निर्माण जयपुर जिले के चाकसू की शील की डूंगरी पर सवाई माधोसिंह ने करवाया था। होली के आठ दिन बाद चैत्र कृष्ण अष्टमी को इनकी विशेष पूजा होती है। शीतला माता के पुजारी कुम्हार होते है। इनकी सवारी गधा है। इनकी पूजा खंडित मूर्ति के रूप में की जाती है। शीतला माता का प्रतीक चिन्ह दीपक है।
शीतला माता को चेचक की देवी, सैढल माता, महामाई माता व बच्चों की संरक्षिका भी कहा जाता है।

राणी सती -

राणी सती का मंदिर खेतड़ी में है। यह देवी अग्रवालों की कुलदेवी है। राणी सती का मूल नाम नारायणी बाई था। इन्हें दादी जी भी कहा जाता है। राणी सती के मंदिर पर भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को मेला लगता है।

नारायणी माता -

नारायणी माता का मंदिर अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में है। नारायणी माता के बचपन का नाम करनेती था। इस देवी के मंदिर पर वैशाख शुक्ल एकादशी को मेला लगता है। नारायणी माता नाई जाति की कुलदेवी है।

शीला माता‌ -

शीला माता के मंदिर का निर्माण मानसिंह ने 1599 ईस्वी में आमेर दुर्ग में करवाया था। मानसिंह शिला माता की इस अष्टभुजा मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे। शिला माता जयपुर के कछवाहा शासको की इष्ट देवी है। यहां पर वर्ष में दो बार चैत्र व अश्विन नवरात्रों में मेला लगता है।

शीला माता‌

ब्राह्मणी माता -

ब्राह्मणी माता का मंदिर बारां जिले के शौरसेन में है। इस मंदिर में देवी के पीठ का श्रृंगार करके पीठ की पूजा की जाती है। यहां पर माघ शुक्ल सप्तमी को गधों का मेला भरता है।

गोठ-मांगलोद की दधिमाता -

दधिमाता का मंदिर नागौर के गोठ व मांगलोद गांवों के बीच बना है। इस मंदिर की दीवारों पर भगवान राम के वनवास से लेकर रावध वध तक के चित्र अंकित किए गए हैं। दधिमाता ब्राह्मण समाज की कुलदेवी हैं।

आसवरी माता या आवरी माता -

चित्तौड़गढ़ के निकुंभ में आवरी माता का मंदिर है। मान्यता के अनुसार यहां बने तालाब में नहाने से लकवा ठीक हो जाता है।

बदनौर की कुशाल माता -

भीलवाड़ा के बदनौर में बने इस मंदिर का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। कुशाल माता को चामुंडा माता का अवतार माना जाता है। इस मंदिर के पास बैराठ माता का मंदिर भी है, जिसे जाट बैराठ भी कहा जाता है।

कैला देवी माता या अंजनी माता -

कैला देवी का मंदिर करौली जिले में कालीसिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर बना है। मान्यता के अनुसार कैला देवी पूर्वजन्म में हनुमान जी की माता अंजनी थी। कैला देवी करौली के यादव राजवंश की जादोन शाखा की कुलदेवी है।
कैला देवी मंदिर के सामने बोहरा भगत की छतरी है। केला देवी का मेला चैत्र शुक्ल अष्टमी को लगता है, जिसमें लांगुरिया गीत गाए व नृत्य किया जाता है। इस मेले को लक्खी मेला भी कहा जाता है।
कैला देवी

सच्चियाय माता -

सच्चियाय माता का मंदिर जोधपुर के औसियां में है, जो परमार व श्वेतांबर जैन धर्म के ओसवाल समाज की कुलदेवी है। सच्चियाय माता को सांप्रदायिक सद्भाव की देवी कहा जाता है। सच्चियाय माता का यह मंदिर प्रतिहार शैली में बना है। ओसिया राजस्थान का एकमात्र स्थान है, जहां 8-12वीं शताब्दी तक विभिन्न संप्रदायों के बने वैष्णव, शैव, सूर्य, जैन एवं देवी मंदिर है।

चामुंडा माता -

पुराणों के अनुसार चामुंडा माता दुर्गा माता का सातवां अवतार कालिका है। कालिका माता चण्ड और मुंड का वध करने के बाद चामुंडा कहलाने लगी।
चामुंडा माता प्रतिहरों की इंदावंश शाखा की कुलदेवी है। चामुंडा माता का मूल मंदिर जोधपुर के चामुंडा गांव की पहाड़ी पर है।
राव चुंडा ने अपनी इष्ट देवी चामुंडा माता का मंदिर मंडोर में बनवाया था। राव जोधा ने इस मंदिर से मूर्ति लाकर जोधपुर किले के चामुंडा बुर्ज पर लगवा दी थी। यहां पर नए मंदिर का निर्माण महाराज तख्तसिंह ने करवाया था।
सितंबर 2008 में यहां पर नवरात्रा के अवसर पर भगदड़ मचने से 300 लोगों की मौत हो गई थी। इसकी जांच करने के सरकार ने जसराज चौपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी।
चामुंडा माता के अजमेर में बने मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था। यह देवी पृथ्वीराज चौहान व कवि चंदबरदाई की इष्ट देवी थी।

नागणेची माता -

नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुलदेवी है। नागाणा गांव नागणेची माता का पहला धाम रहा है। राव जोधा ने इस गांव से नागणेची माता की मूर्ति लाकर जोधपुर किले में मंदिर बनवाकर लगवा दी थी। नागणेची माता महिषासुरमर्दिनी का स्वरूप है। इसका दूसरा रूप श्येन पक्षी है, जो मारवाड़, बीकानेर तथा किशनगढ़ रियासतों के राष्ट्रीय ध्वजों पर भी अंकित है। लोक देवता कल्लाजी राठौड़ की कुलदेवी भी नागणेची माता है।

बाण माता -

बाण माता मेवाड़ के गुहिल व सिसोदिया वंश की कुलदेवी है। बाण माता का मुख्य मंदिर नागदा में है, लेकिन मेवाड़ की राजधानी बदलते रहने से इनके मंदिर भी नए बनते रहे

बाण माता

खीमल / खींवल माता -

खींवल माता सोलंकी राजपूतों की कुलदेवी है। इसे शुभंकरी / क्षेमंकरी देवी भी कहा जाता है। खींवल माता के मंदिर का निर्माण जालौर के भीनमाल के बंसतगढ किले में राजा वर्मलाट ने करवाया था।

बिजासण माता -

बीजासण माता का मंदिर बूंदी के इंद्रगढ़ में बना है, इसे इंद्रगढ़ देवी के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पूर्णिमा तथा अश्विन व चैत्र के नवरात्रों में मेला लगता है।

सुंधा माता -

सुंधा माता के मंदिर का निर्माण चोंचिगदेव ने भीनमाल के सुंधा पर्वत पर चामुंडा माता के रूप में करवाया था। यह मंदिर सुंधा पर्वत पर बना होने के कारण इस देवी को सुंधा माता के रुप में जाना जाने लगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर माता सती का शीश आकर गिरा था, इसलिए इस देवी को आज अघटेश्वरी कहा जाता है। अघटेश्वरी का अर्थ धड़रहित देवी होता है।
सुंधा माता देवल राजपूत, श्रीमाली ब्राह्मणों की लाडवानु गौत्र व वैश्य के कंपिजल गौत्र के लोगों की कुलदेवी है।
इस मंदिर तक पहुंचने के लिए वर्ष 2007 में राजस्थान का पहला रोपवे शुरू किया गया था।

शाकंभरी माता -

शाकंभरी माता चौहान वंश की कुलदेवी है। इसे देवी काली का अवतार माना जाता है। इस देवी को शाक से जनता का भरण पोषण करने वाली कहा जाता है, इसलिए इस देवी का नाम शाकंभरी पड़ा है। शाकंभरी देवी का भारत में सबसे प्राचीन शक्तिपीठ जयपुर के सांभर कस्बे में है। सांभर को देवयानी व सब तीर्थों की नानी के नाम से जाना जाता है।

शाकंभरी माता

उदयपुर वाटी की शंकरा माता / सकराय माता -

सीकर जिले के उदयपुरवाटी के समीप सकराय माता का मंदिर है।
यह स्थान 'शक्र तीर्थ' के नाम से जाना जाता है। इस देवी का प्राचीन नाम शंकरा था, जो वर्तमान में सकराय माता के नाम से जानी जाती है।

विरातरा माता / वांकल माता -

वांकल माता का मंदिर बाड़मेर जिले की चौहटन तहसील में है। इस स्थान पर एक और पर्वतीय चट्टानें है, तो दूसरी तरफ बालू रेत के विशाल टीले हैं। यह देवी भोपो की कुलदेवी है।

धोलागढ़ माता -

धोलागढ़ माता का मंदिर अलवर में धोलगिरी पर्वत पर है। इसका निर्माण लक्खी शाह बनजारे ने करवाया था। यह देवी गौड ब्राह्मणों की कुलदेवी है।

मनसा माता -

मनसा माता का मंदिर खेतड़ी व सीकर के मध्य हर्ष पर्वत के पास है। इस स्थान पर दादू पंथ के संत सुंदरदास जी ने तपस्या की थी। यहां पर चैत्र व आश्विन माह के नवरात्रों पर विशाल मेला लगता है। मनसा माता का एक अन्य प्राचीन मंदिर जयपुर के आमेर में भी है।

कालिका माता -

चित्तौड़ दुर्ग में विजयस्तंभ व रानी पद्मिनी महलों के पास कालिका माता का मंदिर है। मूल रूप से यह मंदिर सूर्य मंदिर था। महाकाली को गौड़ क्षत्रिय वंश के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। इसके अलावा सिरोही, डुंगरपुर और झालावाड़ में भी महाकाली के प्रमुख मंदिर है।

नकटी माता -

जयपुर के जय भवानीपुरा गांव में नकटी माता का गुर्जर प्रतिहार कालीन प्राचीन मंदिर है। मूल रूप से यह मंदिर दुर्गा माता का मंदिर है। मान्यता के अनुसार यह देवी गांव वालों को चोर लुटेरों के प्रति सचेत करती थी। इस कारण चोरों ने इस देवी की प्रतिमा को नाक से पास से खंडित कर दिया था। इसी से नकटी माता नाम पड़ा है।

जोगणिया माता -

भीलवाड़ा में ऊपरमाल पठार के दक्षिणी किनारे पर अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है। मान्यता के अनुसार यहां के शासक देवा हाड़ा ने अपनी पुत्री की शादी में इस देवी को आने का न्योता दिया था। तब यह देवी जोगन का रूप धारण कर विवाह में गई थी, तभी से इसे जोगणिया माता के नाम से जाना जाता है।

धनोप माता -

धनोप माता का मंदिर शाहपुरा के पास धनोप गांव में है। इस धनोप गांव के दोनों तरफ खारी व मानसी नदियां बहती है। धनोप माता यहां के शासक राजा धुंध की कुलदेवी थी, जिसके नाम पर इस गांव का नाम धनोप पड़ा था।

सुगाली माता -

सुगाली माता की 10 सिर और 54 हाथों वाली काले पत्थर से निर्मित मूर्ति पहले आऊवा के किले (वर्तमान पाली जिले में) थी, जो वर्तमान में पाली जिले के म्युजिअम में रखी है।
सुगाली माता आऊवा के चंपावत ठाकुरों की कुलदेवी है। इसे '1857 की क्रांति की देवी' भी कहा जाता है।

कैवाय माता -

कैवाय माता का मंदिर परबतसर के किनसरिया गांव में है। कैवाय माता दहिया राजवंश की कुलदेवी है। प्राचीन समय में इस देवी को अंबिका माता के नाम से जाना जाता था।

घेवर माता -

घेवर माता का मंदिर राजसमंद झील की पाल पर बना है। राजसमंद झील की नींव घेवर माता ने रखी थी। यहीं पर घेवर बाई (माता) सती हुई थी।

वटयक्षिणी देवी / झांतला माता -

इस देवी का मंदिर चित्तौड़गढ़ में एक वट वृक्ष के पास बना है। वटयक्षिणी माता को आम भाषा में झांतला माता कहा जाता है। यहां पर लकवा से पीड़ित रोगी स्वास्थ्य लाभ के लिए आते हैं।

राठासण देवी -

मान्यता के अनुसार हरित ऋषि ने बप्पा रावल के लिए मेवाड़ का राज्य मांगने के लिए राष्ट्रसेनी देवी की पूजा की थी, जो वर्तमान में राठासण देवी के नाम से जानी जाती है।

भदाणा माता -

भदाणा माता कोटा के शासको की कुलदेवी है। कोटा में स्थित भदाणा माता के मंदिर में मूठ विद्या (मारण विद्या का तांत्रिक प्रयोग) से पीड़ित व्यक्ति का इलाज किया जाता है।

बड़ली माता -

बड़ली माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ में बेड़च नदी के किनारे स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर में बनी दो तिवारीयों में से बच्चों को निकालने से उनकी बीमारियां दूर हो जाती है।

चौथ माता -

चौथ माता का मंदिर सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा कस्बे में स्थित है। यह देवी कंजर समाज की कुलदेवी है। करवाचौथ पर इस देवी की पूजा की जाती है।

अर्बुदा देवी -

इस देवी का मंदिर सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। अर्बुदा देवी को अधर देवी व राजस्थान की वैष्णो देवी कहा जाता है। इस देवी के नाम पर ही अरावली को अर्बुदाचल कहा जाता है।

तुलजा भवानी -

इस माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बना है। तुलजा भवानी छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी है।

पीपलाद माता -

राजसमंद जिले के ऊनवास गांव में दुर्गा माता का मंदिर है। इसे ही पीपलाद या ऊनवास की माता कहा जाता है।

आद माता -

आद माता झाला वंश की कुलदेवी है। इसे मरमर माता भी कहा जाता है।

लटियाली माता -

लटियाली माता का मंदिर फलोदी में है, जो कल्लों की कुलदेवी है। इस देवी को 'खेजड़ बेरी राय भवानी' भी कहते हैं।

आमजा माता -

आमजा माता का मंदिर उदयपुर के केलवाड़ा में है। यह देवी भीलो की कुलदेवी है।

जिलाड़ी माता -

जिलाड़ी माता का मंदिर बहरोड़ कस्बे में है। इस देवी को धर्मांतरण रोकने के लिए जाना जाता है।

नरक चतुर्दशी कब है


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