राजस्थान की प्रमुख छतरियां - Rajasthan Ki Chhatariya
Hello friends, इस पोस्ट में हम राजस्थान की प्रमुख छतरियों की जानकारी प्राप्त करेंगे। इस पोस्ट के अंत में PDF Notes की लिंक भी दी है, जहां से आप डाउनलोड भी कर सकते हैं। राजस्थान सामान्य ज्ञान के लिए आप YouTube Channel को भी Subscribe कर सकते हैं
~ 84 खंभों की छतरी -
इस छतरी का निर्माण 1683 ईस्वी में महाराव अनिरुद्ध सिंह ने धाबाई देवा गुर्जर की स्मृति में देवपुरा गांव (बूंदी) में करवाया था। इस छतरी में कामसूत्र के 84 आसनों को दर्शाया गया है।~ 80 खंभों की छतरी -
अलवर दुर्ग के पास बनी 80 खंभों की मूसी महारानी की छतरी है। जिसका निर्माण 1815 में महाराजा विनयसिंह ने करवाया था। इस छतरी में रामायण और महाभारत कालीन भित्ति चित्र अंकित किए गए हैं।~ गैटोर की छतरियां -
नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बनी गैटोर की छतरियां जयपुर शासकों का निजी श्मशान घाट है। जिसमें सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह तक के राजाओं की छतरियां है।~ राजा मानसिंह प्रथम की छतरी -
आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी आमेर के पास हाड़ीपुरी गांव में है। जिसकी स्थापत्य कला कोलायत में साधु गिरिधापति की छतरी के समान है।~ सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी -
इस छतरी का निर्माण सवाई माधोसिंह ने सिटी पैलेस (जयपुर) के जयनिवास उद्यान में करवाया था।~ रणथंभोर की छतरी -
इस 32 खंभों की छतरी का निर्माण रणथंभोर दुर्ग में हम्मीर देव ने अपने पिता जयसिंह की स्मृति में करवाया था। इसे न्याय की छतरी कहा जाता है।~ मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) की छतरी -
यह 32 खंभों की छतरी आमेर के जगन्नाथ कच्छवाहा की समाधि पर बनी है। इस छतरी पर एक ही पत्थर से 5 फीट ऊंचा शिवलिंग बना है।~ जोधपुर की रानियों की छतरियां -
मंडोर के पंचकुट के पास कुल 49 छतरियां बनी है। इन छतरियों में रानी सूर्य कंवरी की 32 खंभों की छतरी सबसे बड़ी है, जबकि महाराजा मानसिंह की भटियानी रानी की छतरी सबसे ऊपर बनी है।~ देवी कुंड की छतरियां -
यह छतरियां बीकानेर शहर के पास कल्याण सागर के किनारे बीकानेर राजघराने के निजी शमशान घाट में बनी है। इन छतरियों में महाराजा सूरजमल की सफेद संगमरमर से बनी छतरी प्रसिद्ध है।~ मंडोर की छतरियां -
मंडोर की छतरियों में ब्राह्मण देवता की छतरी, कागा की छतरियां, मामा-भांजा की छतरी, गोरा धाय की छतरी प्रमुख है।ब्राह्मण देवता की छतरी मेहरानगढ़ दुर्ग के तांत्रिक अनुष्ठान में आत्म-बलिदान देने वाले ब्राह्मण की है। मामा-भांजा की छतरी धन्ना गहलोत और भीयां चौहान की है। गोरा धाय की छतरी महाराजा अजीतसिंह की धाय मां गोरा धाय की छतरी है, जिसका निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने जोधपुर के पुराने स्टेडियम के पास करवाया था।