Bheel Janjati ke lok nritya - भीलों के लोकनृत्य ट्रिक्स से
इस पोस्ट में हम भीलों के लोकनृत्यों को धमाकेदार ट्रिक्स के माध्यम से देखते हैं, ताकि आपको याद करने में कठिनाई ना हो।भील जनजाति के लोकनृत्य -
भीलों के लोकनृत्य ट्रिक्स से -
ट्रिक- भीलों ने गदा से सुअर का शिकार कर गुंगा हाथी दो बार युद्ध में घुमाया
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लों - लाठी | ने - नेजा | ग - गौरी,गैर | सुअर का - सुकर का मुखौटा | शिकार - शिकार | र - रमणी | गु - गवरी | गा - गवरी की गाई (गम्मत) | हाथी - हाथिमना | दो - द्विचक्री | बार - बेरीहाल | युद्ध में - युद्ध | घुमाया - घूमरा/झूमरलाठी नृत्य -
• यह नृत्य भीलों का पुरुष प्रधान नृत्य है । इस नृत्य में पुरुष हाथ में लाठी लेकर विभिन्न प्रकार की कलाओं का प्रदर्शन करते हुए नृत्य करते हैं।नेजा नृत्य -
• यह नृत्य स्त्री व पुरुषों के द्वारा युगल रूप में किया जाता है। इस नृत्य में होली के तीन दिन बाद मैदान में एक खंभा रोप दिया जाता है तथा खंभे के ऊपरी भाग में एक नारियल बांध दिया जाता है।• पुरुष खंभे पर बांधे इस नारियल को लेने का प्रयास करते हैं जबकि महिलाएं छड़ियो और बेंतों से पुरुषों को मारते हुए रोकने का प्रयास करती है।
• इस नृत्य के दौरान ढोल पर 'पगल्या लेना' नामक थाप दी जाती है।
गौरी नृत्य -
• यह नृत्य उदयपुर के आसपास भीलों द्वारा नाटक के रूप में किया जाता है। यह नृत्य भाद्रपद पूर्णिमा के एक दिन पहले किया जाता है।
• इस नृत्य में माता पार्वती के पीहर गमन से जुड़ी घटनाएं नाटक के रूप में प्रदर्शित की जाती है।
• इस नृत्य में माता पार्वती के पीहर गमन से जुड़ी घटनाएं नाटक के रूप में प्रदर्शित की जाती है।
गैर नृत्य -
• यह नृत्य होली के अवसर पर किया जाता है। जिसमें भील पुरुषों के द्वारा भागीदारी की जाती है।
सुकर का मुखौटा नृत्य -
• यह नृत्य, नाटक के रूप में केवल राजस्थान में किया जाता है।
• इस नृत्य में एक शिकारी द्वारा सुकर का मुखौटा पहने व्यक्ति को मारने का अभिनय किया जाता है।
• इस नृत्य में एक शिकारी द्वारा सुकर का मुखौटा पहने व्यक्ति को मारने का अभिनय किया जाता है।
शिकार नृत्य -
• इस नृत्य में भील शिकार की कला का प्रदर्शन करते हैं।
• इस नृत्य में धनुर्विद्या का प्रदर्शन किया जाता है।
• इस नृत्य में धनुर्विद्या का प्रदर्शन किया जाता है।
रमणी नृत्य -
• यह नृत्य विवाह मंडल के सामने विवाह के अवसर पर किया जाता है। इसमें महिलाएं एक पंक्ति में गीत गाते हुए, पैरों को आगे-पीछे करती है, जबकि पुरुष बांसुरी व मांदल वाद्ययंत्रों का वादन करते हैं।
गवरी / राई नृत्य -
• राजस्थान राज्य की सबसे प्राचीन लोक नाटक कला गवरी/राई नृत्य है। इसी कारण इसे लोकनाट्यों का मेरुनाट्य भी कहा जाता है।
• गवरी लोक नाट्य भारत का एकमात्र लोक नाट्य है, जो दिन में प्रदर्शित किया जाता है।
• यह भीलों का एक धार्मिक नृत्य है। इस नृत्य का मुख्य पात्र भगवान शिव है। माता गौरी (पार्वती) के नाम पर इसका नाम गवरी पड़ा है। माता पार्वती को इस नृत्य नाटक में राई के नाम से पुकारा जाता है, उसी से इसका नाम राई नृत्य भी पड़ा है।
• इस नृत्य में भगवान शिव का रूप धारण करने वाले नर्तक को पुरिया तथा अन्य नर्तकों को खेल्ये कहते हैं।
• इस नाटक का सूत्रधार को कुटकुडिया, कविता बोलने वाले को - झामट्या, दोहराने वालों को - खट्कड्या कहा जाता है।
• इस नृत्य की समाप्ति के दिन काली मिट्टी से बनी हाथी की मूर्ति तथा भगवान शिव व पार्वती जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, जिसे वलावण या घड़ावण कहा जाता है।
• भानु भारती ने गवरी लोकनाट्य पर आधारित 'पशु गायत्री' नामक लोक नाटय की रचना की है।
• गवरी लोक नाट्य भारत का एकमात्र लोक नाट्य है, जो दिन में प्रदर्शित किया जाता है।
• यह भीलों का एक धार्मिक नृत्य है। इस नृत्य का मुख्य पात्र भगवान शिव है। माता गौरी (पार्वती) के नाम पर इसका नाम गवरी पड़ा है। माता पार्वती को इस नृत्य नाटक में राई के नाम से पुकारा जाता है, उसी से इसका नाम राई नृत्य भी पड़ा है।
• इस नृत्य में भगवान शिव का रूप धारण करने वाले नर्तक को पुरिया तथा अन्य नर्तकों को खेल्ये कहते हैं।
गवरी की घाई (गम्मत) -
• गवरी लोक नृत्य नाटक में अलग-अलग प्रसंगों को जोड़ने वाले नृत्य को गवरी की घाई (गम्मत) कहा जाता है।• इस नाटक का सूत्रधार को कुटकुडिया, कविता बोलने वाले को - झामट्या, दोहराने वालों को - खट्कड्या कहा जाता है।
• इस नृत्य की समाप्ति के दिन काली मिट्टी से बनी हाथी की मूर्ति तथा भगवान शिव व पार्वती जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, जिसे वलावण या घड़ावण कहा जाता है।
• भानु भारती ने गवरी लोकनाट्य पर आधारित 'पशु गायत्री' नामक लोक नाटय की रचना की है।
हाथिमना नृत्य -
• यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।
• इस नृत्य में व्यक्ति हाथ में तलवार लेकर गोल घेरे में बैठकर नृत्य करता है।
• इस नृत्य में व्यक्ति हाथ में तलवार लेकर गोल घेरे में बैठकर नृत्य करता है।
द्विचक्री नृत्य -
• इस नृत्य में पुरुष व महिलाओं द्वारा दो चक्र बनाकर नृत्य किया जाता है।
• पुरुष बाहरी चक्कर में बाएं से दाएं और महिलाएं अंदर के चक्कर में दाएं से बाएं चलती हुई नृत्य करती है।
• यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।
• पुरुष बाहरी चक्कर में बाएं से दाएं और महिलाएं अंदर के चक्कर में दाएं से बाएं चलती हुई नृत्य करती है।
• यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।
बेरीहाल नृत्य -
• यह नृत्य उदयपुर के खैरवाड़ा के पास बाण्दा गांव में रंग पंचमी पर लगने वाले मेले में किया जाता है।
• बेरीहाल एक ढोल है, जिसे बीच में रखकर उसके चारों ओर नृत्य किया जाता है।
• बेरीहाल एक ढोल है, जिसे बीच में रखकर उसके चारों ओर नृत्य किया जाता है।
युद्ध नृत्य -
• इस नृत्य के माध्यम से भील अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं । इस नृत्य के दौरान दो दल एक - दूसरे पर तलवारों, तीर, भालों और लाठियों से हमला करते हैं।
• इस दौरान ऊंची आवाज में फाइरे फाइरे रणघोष कहकर मांदल वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
• इस नृत्य के दौरान कई नृत्यक घायल हो जाते है, इसलिए राज्य सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगा रखा है।
• इस नृत्य में महिलाएं अर्द्धवृत्ताकार घेरा बनाकर घूम-घूम कर नृत्य करती हैं, उसी से इसका नाम घूमरा पड़ा है।
• इस दौरान ऊंची आवाज में फाइरे फाइरे रणघोष कहकर मांदल वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
• इस नृत्य के दौरान कई नृत्यक घायल हो जाते है, इसलिए राज्य सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगा रखा है।
घूमरा / झूमर नृत्य -
• यह नृत्य गुजरात के गरबा नृत्य से काफी समानता रखता है।• इस नृत्य में महिलाएं अर्द्धवृत्ताकार घेरा बनाकर घूम-घूम कर नृत्य करती हैं, उसी से इसका नाम घूमरा पड़ा है।