Tombs and Mosques of Rajasthan - राजस्थान के मकबरे और मस्जिदें
Hello Friends, इस Article में हम राजस्थान के प्रमुख मकबरों और मस्जिदों के बारे में प्रतियोगी परीक्षाओं के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हैं। PDF Notes के लिए नीचे Download लिंक दिया है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह -
• ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में तारागढ़ पहाड़ी के पास बनी है। इनका जन्म ईरान में हुआ था। इनके पिता का नाम हजरत ख्वाजा सैयद गयासुद्दीन और माता का नाम बीवी साहेनूर था।• उनके बचपन का नाम खुरासान और गुरु का नाम हजरत शेख उस्मान हारुनी था।
• ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज तृतीय के शासनकाल में मोहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे। मोहम्मद गोरी ने इन्हें सुल्तान-ए-हिंद की उपाधि प्रदान की थी। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु 1233 ईस्वी में इस्लामी माह रज्जब की 6 तारीख को हुई थी, इसलिए रज्जब माह की 1 से 6 तारीख तक यहां उर्स लगता है। इस उर्स में आने वाले लोगों को जायरीन कहते हैं।
• ख्वाजा मोइनुद्दीन मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह मुस्लिम संप्रदाय का मक्का के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की इस मजार-ए-मुबारक और बुलंद दरवाजा का निर्माण मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन मोहम्मद खिलजी ने करवाया था। यहां स्थित बड़ी देग अकबर ने और छोटी देग जहांगीर ने भेंट की थी।
• यहां के निजाम द्वार का निर्माण हैदराबाद के निजाम नवाब मीर उस्मान अली खान ने, महफिल खाना का निर्माण नवाब बशीरूद्दोला सर असमान शाह ने और जुम्मा मस्जिद (शाहजहांनी मस्जिद) का निर्माण शाहजहां ने करवाया था।
हजरत शक्कर पीर बाबा की दरगाह -
• नरहड़ के पीर की दरगाह झुंझुनू के नरहड़ गांव में है। यहां पर कृष्ण जन्माष्टमी को उर्स लगता है। नरहड़ के पीर की दरगाह राजस्थान की सबसे बड़ी दरगाह है।• इन्हें 'बांगड़ के धणी' के नाम से जाना जाता है।
• इस दरगाह पर तीन दरवाजे बुलंद दरवाजा, बसेती दरवाजा और बगली दरवाजा बना है।
शेख हमीमुद्दीन नागौरी की दरगाह -
• शेख हमीमुद्दीन नागौरी की दरगाह नागौर में है, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे। यह भी मोहम्मद गौरी के साथ राजस्थान आए थे।• ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने इन्हें सुल्तान-ए-तारीकीन (संन्यासियों का सुल्तान) की उपाधि दी थी।
इनकी मजार शफीक गिनाणी नामक तालाब के किनारे बनी है।
• राजस्थान में अजमेर के बाद दूसरा सबसे बड़ा उर्स यहां लगता है।
अलाउद्दीन का मकबरा -
• चित्तौड़ में इस मकबरे का निर्माण 1310 में अलाउद्दीन के बेटे खिज्र खां ने करवाया था। इस मकबरे पर फारसी अभिलेख में अलाउद्दीन खिलजी को ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक कहा गया है।अढा़ई दिन का झोपड़ा -
• अढा़ई दिन का झोपड़ा अजमेर में तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में है। इसका निर्माण एक संस्कृत विद्यालय (सरस्वती कंठारण महाविद्यालय) के रूप में बीसलदेव चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) ने करवाया था।• 1194 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे तुड़वाकर मस्जिद में बदल दिया था।
• यहां पर प्रतिवर्ष मुस्लिम फकीर पंजाब शाह का अढ़ाई दिन का उर्स लगता है, इसी कारण इसे अढा़ई दिन का झोपड़ा कहा जाता है।
• बीसलदेव चौहान ने हरिकेलि संस्कृत नाटक की रचना तथा उनके दरबारी सोमदेव ने ललित विग्रहराज नाटक की रचना की थी। इसके कुछ अंश इस अढ़ाई दिन के झोपड़े की दीवारों पर मिले हैं।
सैयद फखरुद्दीन की दरगाह -
• फखरुद्दीन की दरगाह डुंगरपुर जिले में माही नदी के किनारे गलियाकोट गांव में है। यह मुस्लिम संप्रदाय के दाऊदी बोहरा समाज का प्रमुख तीर्थ स्थल है।भरतपुर की जामा मस्जिद -
• इस मस्जिद का निर्माण दिल्ली की जामा मस्जिद के नक्शे पर और इसका प्रवेश द्वार फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजे के नक्शा पर करवाया गया है।अब्दुल्ला खां का मकबरा -
• अब्दुल्ला खां का मकबरा अजमेर में सफेद संगमरमर से बना है। इस मकबरे के सामने बीवी का मकबरा भी बना है।हजरत दीवान शाह की दरगाह -
• दीवान शाह की दरगाह चित्तौड़गढ़ शहर से 40 किलोमीटर दूर कपासन कस्बे में है।शाहबाद की जामा मस्जिद -
• बारां जिले के शाहबाद में इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के मुगल फौजदार मकबूल ने करवाया था। शाहबाद शहर का नाम शाहजहां के नाम पर पड़ा है।बूंदी के मीरान साहब की दरगाह -
• मीरान साहब की दरगाह बूंदी शहर के पास जैत सागर के निकट पहाड़ी पर है।अजमेर के मीरान साहब की दरगाह -
• यह दरगाह अजमेर में तारागढ़ दुर्ग की सबसे ऊंची चोटी पर बनी है। मीरान साहब तारागढ़ के प्रथम गवर्नर थे। इनका मूल नाम मीर सैय्यद हुसैन खिंगसवार था।• यहां पर एक घोड़े की मजार भी है, जो भारत में एकमात्र घोड़े की मजार है।
हजरत सैय्यद ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती की दरगाह -
• यह दरगाह अजमेर के सरवाड़ में है। फखरुद्दीन चिश्ती ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के बड़े पुत्र थे।काका जी की दरगाह -
• यह दरगाह प्रतापगढ़ जिले में है। इस दरगाह को कांठल का ताजमहल कहा जाता है।मलिक शाह की दरगाह -
• यह दरगाह जालौर दुर्ग में बनी है। यहां पर नाथ पंथ के साधु भी उर्स के अवसर पर चादर चढ़ाते हैं।तोपखाना मस्जिद -
• यह मस्जिद भी जालौर दुर्ग में है, जो परमार शासक राजा भोज द्वारा बनाई पाठशाला पर बनी है। अलादीन खिलजी ने इस पाठशाला को तुड़वाकर मस्जिद में बदल दिया था।• बाद में इस मस्जिद में तोपों के लिए गोला-बारूद रखा जाने लगा, इसी से इसका नाम तोपखाना मस्जिद पड़ा है। यह राजस्थान की निर्माण के आधार पर सबसे प्राचीन मस्जिद है।