उपनिवेशवाद क्या है - What is Colonialism
Hello friends, इस पोस्ट में उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया को जानेंगे। इसके अलावा उपनिवेशवाद का अर्थ, इसका प्रारंभ और अंत के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे।उपनिवेशवाद का अर्थ-
• किसी शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने असीमित विभिन्न हितों को पूरा करने के लिए किसी कमजोर, किंतु प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन राष्ट्र के संसाधनों का बलपूर्वक दोहन करना और साथ ही उस उपनिवेशी जनता पर अपने Rules द्वारा शासन करना और शासन में राजनीतिक अधिकार से वंचित रखना, उपनिवेशवाद कहलाता है।• इस प्रकार हम किसी शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने विभिन्न स्वार्थों के कारण किसी कमजोर राष्ट्र के शोषण और वहां की जनता पर किए गए भीषण अत्याचार को उपनिवेशवाद का नाम दे सकते हैं।
उपनिवेशवाद शब्द की उत्पत्ति -
• उपनिवेशवाद लेटिन भाषा के शब्द 'कोलोनियां' से निकला है। जिसका अर्थ, एक ऐसी जगह, जिसे किसी योजनानुसार विदेशियों के बीच कायम किया गया हो और उन पर राजनीतिक व आर्थिक अधिकार स्थापित कर लिए गए हो। भूमध्यसागरीय क्षेत्र और यूरोप में इस तरह का उपनिवेशीकरण करना सबसे पहले यूरोप में शुरू हुआ। इसका उदाहरण इंग्लैंड द्वारा वेल्स और आयरलैंड को उपनिवेश बनाने के रूप में दिया जा सकता है। लेकिन जिस आधुनिक उपनिवेशवाद की चर्चा हम कर रहे है, उसका मतलब है यूरोपीय और अमेरिकी ताकतों द्वारा जो गैर- पश्चिमी संस्कृतियां और राष्ट्र थे उन पर जबरन कब्जा करके वहां के राजकाज, प्रशासन, पर्यावरण, पारिस्थितिकी, भाषा, धर्म, व्यवस्था और जीवन शैली पर अपने निजी स्वार्थों को थोपने की एक लंबी प्रक्रिया थी । इस तरह के उपनिवेशवाद का एक कारण कोलंबस और वास्कोडिगामा की समुद्री यात्राओं को भी माना जाता है।उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया पर जॉन लॉक के दर्शन का प्रभाव -
• उपनिवेशवाद के लिए जरूरी था, कि जीते हुए देशों में अपनी कॉलोनियों को बसाकर, आक्रामकता के साथ खुद को श्रेष्ठ मानते हुए अपने कानून और फैसले वहां पर सख्ताई से लागू करें।• उपनिवेशवाद की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए एक खास विचारधारा का तर्क हासिल करना आवश्यक था और यह भूमिका 17वीं शताब्दी में जॉन लॉक के दर्शन ने निभाई। उस के दर्शन ने ब्रिटेन द्वारा भेजे गए निवासियों द्वारा अमेरिका की धरती पर कब्जा कर लेने की कार्रवाई को न्याय संगत ठहराया था और उन्होंने अपनी रचना 'टू ट्रीटाइज ऑन सिविल गवर्नमेंट' (1690) में व्यक्ति द्वारा अपने अधिकारों की दावेदारी के बारे में लिखा । उन्होंने ऐसी जगहों पर नागरिक शासन स्थापित करने और व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा हथियाई गई संपदा को अपने लाभ के लिए उपयोग करने को जायज करार दिया था। जॉन लॉक के अनुसार अमेरिका में अनाप-शनाप जमीन बेकार पड़ी हुई है और वहां के मूल निवासियों यानी रेड इंडियन्स में इस धरती का सदुपयोग करने की योग्यता नहीं है । इसलिए अमेरिका की सम्पदा का उपभोग करने में कोई बुराई नहीं है।
• जॉन लॉक के अनुसार अगर यूरोप की एक एकड़ जमीन अपने स्वामी को 5 शिलिंग प्रतिवर्ष का मुनाफा दे देती है, तो उसके मुकाबले अमेरिका की जमीन से होने वाला कुल मुनाफा एक पेनी से भी बहुत कम है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अमेरिकी लोग बाकी दुनिया में प्रचलित धन-आधारित विनिमय प्रणाली को अपनाने में नाकाम रहे थे। इसलिए संपत्ति के अधिकार के मुताबिक उनकी जमीन को अपने नियंत्रण में लेकर उस पर मानवीय श्रम द्वारा अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए। जॉन लॉक की इसी धारणा से एशियाई और अमेरिकी महाद्वीप की सभ्यता और संस्कृति पर यूरोपीय श्रेष्ठता के बीज बोने शुरू हो गए। जिसके आधार पर आगे चलकर उपनिवेशवादी संरचनाओं का साम्राज्य खड़ा किया गया।
उपनिवेशों पर अत्याचार -
• उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया में यूरोपियन द्वारा उपनिवेशों को दो प्रकार से स्थापित किया गया। एक तरफ तो जहां अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश थे, जिनकी जलवायु यूरोपीय लोगों के लिए अनुकूल थी। इन इलाकों में श्वेत लोगों को बहुत बड़े पैमाने पर बसाया गया और उन श्वेत लोगों द्वारा वहां की स्थानीय आबादी का भीषण नरसंहार के कारण वहां न केवल पूरी तरह अपना कब्जा जमा लिया, बल्कि उन देशों को अपनी संस्कृति के मुताबिक बदल लिया। शेष बची देशी जनता को उन्होंने अलग-थलग पड़े इलाकों में भगा दिया।• दूसरी तरफ ऐसे उपनिवेश थे, जिनकी जलवायु यूरोपीय लोगों के लिए बिल्कुल प्रतिकूल थी ( जैसे भारत और नाइजीरिया आदि देश)। इन देशों पर कब्जा करने के बाद यूरोपियन लोग थोड़ी संख्या में ही वहां पर बसे और उनका प्रमुख उद्देश्य उन देशों का आर्थिक शोषण और दोहन करना ही था।
उपनिवेशवाद का अंत -
• औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न हुए हालात ने उपनिवेशों के शोषण और जनता पर हुए अत्याचार को और अधिक बढ़ा दिया था। यह सिलसिला 20वीं सदी के मध्य तक चलता रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय देश भारी आर्थिक संकट में फंस गये और सैन्य शक्ति की दृष्टि से भी काफी कमजोर हो गये। इसके अलावा उपनिवेशों में वि-उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय मुक्ति-संग्रामों और क्रांतियों की लहर बड़े पैमाने पर मजबूत होने पर यूरोपीय देशों को उपनिवेश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद ही यह राष्ट्र अपनी आजादी व सम्प्रभुता को हासिल कर पाए।दोस्तों इस ब्लॉग में हमनें उपनिवेशवाद से संबंधित जानकारी प्राप्त की। इसी प्रकार आगे भी विश्व इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण टॉपिक कवर करेंगे।