Gagron Durg - गागरोन का किला | Gagron Fort हिंदी में बिल्कुल प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित

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Gagron Durg - गागरोन का किला

~ दुर्ग का निर्माण आहु व कालीसिंध नदी के संगम (इस संगम को सामेलजी कहा जाता है) पर स्थित मुकुंदरा पहाड़ी पर 7-8 शताब्दी में डोड राजपूत (परमार) राजा बीजलदेव ने करवाया था। डोड राजपूतों के नाम पर इसे डोडगढ /धूलरगढ भी कहते है। यह पहाड़ी अरावली पर्वतमाला का भाग न होकर विंध्याचल पर्वतमाला का भाग है।

~ 12वीं शताब्दी में खींची शासक देवनसिंह ने धूलरगढ पर अधिकार कर इसका नाम गागरोन रखा। इसका अन्य नाम‌ गर्गराटपुर/गलका नगरी है।
~ यह भारत का एकमात्र दुर्ग है, जो बिना नींव के एक कठोर चट्टान पर बना हुआ है।
~ इस किले में बादशाह शाहआलम के समय चांदी का सालिम शाही रुपया ढाला जाता था।
~ इस दुर्ग में शिवदास गाडण ने डिंगल भाषा में 'अचलदास खींची री वचनिका' और पृथ्वीराज राठौड़ ने 'वेलिक्रिसन रुक्मणी री वचनिका' की रचना डिंगल भाषा में की थी।

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गागरोन दुर्ग के दर्शनीय स्थल -

~ मीठे साहब की दरगाह - खुरासान के प्रसिद्ध सूफी संत हमीदुद्दीन चिश्ती की यहां वफात (मृत्यु) होने पर औरंगजेब ने उनकी समाधि पर इस दरगाह का निर्माण करवाया था।
~ संत पीपाजी की छतरी - संत पीपाजी के बचपन का नाम प्रतापसिंह था। ये संत रामानंद के शिष्य बनकर राजस्थान में भक्ति आन्दोलन का अलख जगाने वाले पहले संत थे। संत पीपाजी की गुफा टोंक जिले के टोडा गांव में है।

~ बुलंद दरवाजा - इसका निर्माण औरंगजेब ने करवाया था।
~ गीध कराई - गागरोन दुर्ग के पीछे कालीसिंध नदी के तट पर ऊंची पहाड़ी को गीध कराई कहते हैं। इस पहाड़ी से राजनैतिक बंदियों को नीचे गिराकर मृत्यु दंड दिया जाता था।
~ जालिम कोट - कोटा रियासत के सेनापति जालिम सिंह झाला ने गागरोन दुर्ग के विशाल परकोटे का निर्माण करवाया था। उसी के नाम पर यह जालिम कोट कहलाता है।
~ गागरोनी तोता - इस दुर्ग में हीरामन जाति के तोते मिलते हैं, जो हूबहू इंसानों जैसी आवाज निकाल सकते हैं।

गागरोन दुर्ग के साके -

~ पहला साका - अचलदास खींची के शासनकाल में 1423 ई में मांडु के सुल्तान अलप खां गौरी के आक्रमण के समय हुआ था। शिवदास गाडण ने 'अचलदास खींची री वचनिका' में इस युद्ध का उल्लेख किया है।
~ दुसरा साका - अचलदास खींची के पुत्र पाल्हणसी के शासन काल में 1444 ई. में मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम के आक्रमण के समय हुआ था। इसका उल्लेख 'मआसिरे महमूद शाही' पुस्तक में मिलता है। महमूद खिलजी ने इस दुर्ग को जीतकर‌ इसका नाम मुस्तफाबाद रख दिया था।

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