Rajasthan ke Mandir - राजस्थान के प्रमुख मंदिर
इस Post में हम राजस्थान के प्रमुख मंदिरों को जिलेवार देखते हैं। वैसे सभी मंदिरों को विस्तार से किसी अन्य Post में देखेंगे, जिनकी Link आपको इसी Post में दे दी जाएगी।भारत में मंदिर निर्माण की प्रमुख शैलियां -
~ एकायतन शैली -
इस शैली के मंदिर में एक ही देवता या देवी का मंदिर होता है। जिसमें एक गर्भगृह, सभामंडल और द्वार होता है।
~ पंचायतन शैली -
इस शैली के मंदिर में एक मुख्य देवी या देवता का मंदिर होता है, जबकि इस मंदिर के चारों कोनों में चार अलग-अलग मंदिर होते हैं।
~ नागर शैली -
इसे शैली के मंदिरों की प्रधानता उत्तर भारत में है। यह मंदिर शिखरनुमा आकृति में बनाए जाते हैं। इस शैली को आर्य शैली कहा जाता है।
~ द्रविड़ शैली -
इस शैली के मंदिर निर्माण दक्षिण भारत में मिलते हैं, जो पिरामिडनुमा आकृति में होते हैं।
~ बेसर शैली / चालुक्य शैली -
यह मंदिर निर्माण शैली द्रविड़ तथा नागर शैली के मिश्रण से बनी है। इस शैली के मंदिरों का निर्माण मध्य भारत में सर्वाधिक किए गए हैं।
राजस्थान के प्रमुख मंदिर (part-2) - CLICK HERE
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उदयपुर में नागदा (कैलाशपुरी) नामक स्थान पर है। एकलिंग जी मेवाड़ के सिसोदिया वंश के इष्ट देव तथा कुल देवता है।
• मेवाड़ के शासक एकलिंग जी को वास्तविक शासक मानते थे जबकि स्वयं को उनका दीवान मानते थे।
• इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने तथा जीर्णोद्धार मोकल ने करवाया था।
• मेवाड़ के शासक एकलिंग जी को वास्तविक शासक मानते थे जबकि स्वयं को उनका दीवान मानते थे।
• इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने तथा जीर्णोद्धार मोकल ने करवाया था।
~ अंबिका देवी का मंदिर -
उदयपुर के जगत स्थान पर अंबिका देवी मंदिर में नृत्य करते गणेश जी की विशाल प्रतिमा है। इस मंदिर को मेवाड़ का खजुराहो कहा जाता है।
~ सास-बहु का मंदिर -
उदयपुर के नागदा में सहस्रबाहू का मंदिर है, जिसे सास-बहु का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर सोलंकी व महामारू शैली में बना है।
~ जगदीश मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण महाराणा जगतसिंह प्रथम ने 1651 में उदयपुर के सिटी पैलेस के पास पिछोला झील के किनारे करवाया था।
• इस मंदिर में भगवान जगदीश की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति है।
• मंदिर को सपने से बना मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर के शिल्पकार अर्जुन, भाषा एवं मुकुंद थे।
• इस मंदिर में भगवान जगदीश की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति है।
• मंदिर को सपने से बना मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर के शिल्पकार अर्जुन, भाषा एवं मुकुंद थे।
~ गुप्तेश्वर महादेव मंदिर -
उदयपुर में हाडा पर्वत पर बना गुप्तेश्वर महादेव को गिरवा का अमरनाथ और मेवाड़ का अमरनाथ भी कहा जाता है।
~ जावर का विष्णु मंदिर -
उदयपुर के जावर में रमानाथ कुंड और भगवान विष्णु के मंदिर का निर्माण महाराणा कुंभा की पुत्री रमाबाई ने करवाया था।
~ स्कंध कार्तिकेय मंदिर -
उदयपुर के तनेसर में देवताओं की सेना के अधिपति कार्तिकेय (शिवजी के पुत्र) का मंदिर बना हुआ है।
जयपुर के मंदिर -
~ बिडला मंदिर / लक्ष्मी नारायण मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण गंगा प्रसाद बिड़ला ने हिंदुस्तान चैरिटी ट्रस्ट के माध्यम से करवाया है। यह मंदिर एशिया का प्रथम वातानुकूलित मकराना के सफेद संगमरमर से निर्मित है।
~ जगत शिरोमणि मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण आमेर में मानसिंह प्रथम की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगत सिंह की याद में करवाया था। इसे मीरा मंदिर भी कहा जाता है।
~ गलता जी मंदिर -
प्राचीन समय में इस स्थान पर गालव ऋषि का आश्रम था, उसी से गलता नाम पड़ा है।
• गलता जी पूर्व मध्यकाल में नाथ संप्रदाय की गद्दी थी, लेकिन 1503 ईस्वी में रामानुज संप्रदाय के परिहारी ने यहां पर रामानंदी संप्रदाय की स्थापना की।
• मध्यकाल में इसे 'उत्तर तोतात्री' कहा जाने लगा।
• वर्तमान में इसे जयपुर का बनारस, राजस्थान की दूसरी /छोटी काशी और मंकी शैली भी कहा जाता है।
• गलता जी पूर्व मध्यकाल में नाथ संप्रदाय की गद्दी थी, लेकिन 1503 ईस्वी में रामानुज संप्रदाय के परिहारी ने यहां पर रामानंदी संप्रदाय की स्थापना की।
• मध्यकाल में इसे 'उत्तर तोतात्री' कहा जाने लगा।
• वर्तमान में इसे जयपुर का बनारस, राजस्थान की दूसरी /छोटी काशी और मंकी शैली भी कहा जाता है।
~ मोती डूंगरी गणेश मंदिर -
यह मंदिर मोती डूंगरी पहाड़ी की तलहटी में बना है। जिसका निर्माण 1761 ईस्वी में सवाई माधोसिह ने करवाया था।
~ श्री गोविंद देव जी मंदिर -
भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र राजा ब्रजनाथ ने श्रीकृष्ण के तीन विग्रहों गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी और मदनमोहन जी का निर्माण मथुरा में करवाया था।
• इसमें से 1590 ईस्वी में मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में एक मंदिर का निर्माण कर गोविंददेव जी को स्थापित करवाया था।
• इसमें से 1590 ईस्वी में मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में एक मंदिर का निर्माण कर गोविंददेव जी को स्थापित करवाया था।
• औरंगजेब के शासनकाल में गोसाई संप्रदाय के पुजारी ने गोविंददेव जी के विग्रह को जयपुर ले आए। यहां पर सवाई जयसिंह ने जयनिवास उद्यान में सूर्यमहल में स्थापित किया।
• जयपुर के शासक श्री गोविंददेव को जयपुर का वास्तविक शासक तथा स्वयं को उनका दीवान मानते थे।
• जयपुर के शासक श्री गोविंददेव को जयपुर का वास्तविक शासक तथा स्वयं को उनका दीवान मानते थे।
~ श्री गोपीनाथ जी -
श्री गोपीनाथ जी के विग्रह को भी श्री गोविंददेव जी के साथ जयपुर लाया गया था, जिसे जलमहल के पास कनक वृंदावन मंदिर में स्थापित किया गया था।
~ राजेश्वर शिवालय -
इस मंदिर का निर्माण मोती डूंगरी पहाड़ी पर 1864 ई. में सवाई रामसिंह ने करवाया था। यह जयपुर शासको का निजी मंदिर है, जिसे आम लोगों के लिए केवल एक बार महाशिवरात्रि के दिन ही खोला जाता है।
~ कल्कि मंदिर -
जयपुर में बना यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है तथा संसार का एकमात्र कल्कि भगवान का मंदिर है।
~ वीर हनुमान मंदिर, सामोद -
यह मंदिर जयपुर जिले में चौमू पहाड़ी पर बना है। इस मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा वृद्धावस्था रुप में है।
~ अंबिकेश्वर महादेव मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण आमेर में कालिंकदेव ने 1037 ईस्वी में करवाया था। यह मंदिर आमेर में कच्छवाहा शासकों द्वारा बनाया गया सबसे प्राचीन मंदिर है।
~ लक्ष्मी नारायण मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण आमेर में पृथ्वीराज कच्छवाहा की पत्नी बालाबाई ने करवाया था।
~ कल्याण राय जी का मंदिर, आमेर
~ सुर्य मंदिर, आमेर
चित्तौड़गढ़ के मंदिर -
~ बाड़ोली का शिव मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण चित्तौड़गढ़ में परमार शासक हूण ने करवाया था। चित्तौड़गढ़ जिले के भैंसरोड़गढ़ कस्बे के पास है।
• बाड़ोली का मुख्य मंदिर भगवान भगवान शिव के समर्पित है, जो घाटेश्वर महादेव कहलाता है।
• इसके अलावा इसमें भगवान विष्णु के वामन अवतार की प्राचीन मूर्ति भी है।
• बाड़ोली का मुख्य मंदिर भगवान भगवान शिव के समर्पित है, जो घाटेश्वर महादेव कहलाता है।
• इसके अलावा इसमें भगवान विष्णु के वामन अवतार की प्राचीन मूर्ति भी है।
~ समिद्धेश्वर महादेव मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण चित्तौड़गढ़ दुर्ग में परमार शासक भोज ने करवाया था। महाराणा मोकल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, इसी कारण इस मंदिर को मोकल जी का मंदिर भी कहा जाता है।
~ मीराबाई का मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण राणा सांगा ने मीराबाई की भक्ति के लिए महल के रूप में करवाया था। इस मंदिर के सामने मीराबाई के गुरु रैदास जी की छतरी बनी है।
~ सांवलिया सेठ का मंदिर -
यह मंदिर चित्तौड़गढ़ के मंडपिया गांव में स्थित है, इसे अफीम मंदिर भी कहा जाता है।
~ कुंभ श्याम मंदिर -
यह मंदिर मूल रूप से सूर्य मंदिर था, लेकिन मलेच्छों के आक्रमण होने पर इसे नष्ट कर दिया, इस जगह पर महाराणा कुंभा ने भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति स्थापित कर इसका जीर्णोद्धार करवाया था। यह मंदिर इंडो-आर्यन शैली में बना है।
~ कालिका माता का मंदिर -
यह मंदिर मूल रूप से सूर्य मंदिर था, लेकिन मुगलों के आक्रमण द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया। इसके बाद महाराणा सज्जन सिंह ने यहां पर कालिका माता की मूर्ति स्थापित करवाई थी।
~ मातृकुंडिया -
यह मंदिर चित्तौड़गढ़ के मातृकुंडिया स्थान पर चंद्रभागा नदी के किनारे है। इसे राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता है। इस मंदिर में मंगलेश्वर महादेव स्थित है।
कोटा के मंदिर
~ कंसुआ का शिव मंदिर -
यह मंदिर प्राचीन समय में कण्व ऋषि के आश्रम स्थल के रूप में था। इस मंदिर की दीवार पर कुटिया लिपि में शिवगण मौर्य का शिलालेख है, जिसमें मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है। इस मंदिर में 1008 मुखी शिवलिंग भी है।
~ चारचौमा शिव मंदिर -
यह मंदिर कोटा के चारचौमा गांव के पास है। यह कोटा का सबसे प्राचीन शिव मंदिर है।
~ मथुराधीश का मंदिर -
इस मंदिर की स्थापना वल्लभ संप्रदाय के संस्थापक बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ जी ने पाटनपोल स्थान पर करवाई थी। भारत में वल्लभ संप्रदाय की 7 प्रमुख पीठों में से एक कोटा की पीठ है।
~ विभीषण मंदिर -
इस मंदिर में केवल विभीषण की मूर्ति के शीश की पूजा की जाती है। यह देश का एकमात्र विभीषण मंदिर है।
~ बूढा़दीत का सूर्य मंदिर -
यह मंदिर कोटा के बुढ़ादीत गांव में स्थित है। इसका प्राचीन नाम वृद्दादित्य था, जो कालांतर में बुढा़दीत हो गया है।
~ गेपरनाथ महादेव मंदिर -
यह मंदिर कोटा में चंबल नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर में जाने के लिए 300 सीढ़ियां नीचे उतरने पड़ती है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर सदैव झरने की एक धारा गिरती रहती है।
सवाई माधोपुर जिले के मंदिर -
~ त्रिनेत्र गणेश मंदिर -
यह मंदिर रणथंऊबोर दुर्ग में स्थित है, जिसमें श्री गणेश की मूर्ति में केवल मुख है। यह विश्व का एकमात्र त्रिनेत्र गणेश मंदिर है। इस मंदिर के सामने पद्मतला तालाब है, जिसमें हम्मीर देव की पुत्री देवलदे ने जल जौहर किया था।
~ घुश्मेश्वर महादेव मंदिर -
यह मंदिर सवाई माधोपुर के शिवाड़ गांव में स्थित है, जो भगवान शिव का 12वां ज्योतिर्लिंग है।
~ काला-गोरा भेरू जी मंदिर -
यह मंदिर सवाई माधोपुर जिले में पहाड़ी पर 9 मंजिला है, जो मूल रूप से एक प्राचीन तांत्रिक पीठ थी।
• इस मंदिर में स्थापित मूर्ति लटकती हुई प्रतीत होती है, इसलिए इसे 'झूलता हुआ भैरू' भी कहां जाता है।
• इस मंदिर में स्थापित मूर्ति लटकती हुई प्रतीत होती है, इसलिए इसे 'झूलता हुआ भैरू' भी कहां जाता है।
~ अमरेश्वर महादेव मंदिर -
यह मंदिर सवाई माधोपुर जिले में रणथंभोर दुर्ग से चार मील की दूरी पर स्थित है।
सीकर जिले के मंदिर -
~ खाटू श्याम जी मंदिर -
यह मंदिर सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित है, जिसमें घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की श्याम रूप में केवल शीश की पूजा की जाती है।
• इस मंदिर की नींव अजमेर के अभय सिंह ने रखी थी।
• इस मंदिर की नींव अजमेर के अभय सिंह ने रखी थी।
~ हर्षनाथ मंदिर -
यह मंदिर सीकर से 14 किलोमीटर दूर हर्षनाथ पहाड़ी पर महामारू शैली में निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ ने करवाया था। औरंगजेब के सेनापति खानजहां बहादुर द्वारा इस मंदिर को तोड़ देने के बाद नए मंदिर का निर्माण सीकर के राव शिवसिंह ने करवाया था।
~ सप्त गौ माता मंदिर -
सीकर के रैवासा में राजस्थान का प्रथम गौ माता मंदिर है।
बाड़मेर जिले के मंदिर -
~ किराडू मंदिर -
यह मंदिर बाड़मेर जिले के हाथमा गांव के पास हल्देश्वर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। यहां बने पांच मंदिरों में एक भगवान विष्णु का तथा बाकी चार भगवान शिव के है।
• यहां बनी मूर्तियों में सागर मंथन, रामायण एवं महाभारत से संबंधित दृश्य दर्शाये गए हैं।
• इस मंदिर को मूर्तियों का खजाना तथा राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है। यह मंदिर नागर शैली में बना है।
• यहां बनी मूर्तियों में सागर मंथन, रामायण एवं महाभारत से संबंधित दृश्य दर्शाये गए हैं।
• इस मंदिर को मूर्तियों का खजाना तथा राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है। यह मंदिर नागर शैली में बना है।
~ हल्देश्वर महादेव मंदिर -
यह मंदिर बाड़मेर में पीपलूद गांव के पास छप्पन की पहाड़ियों में स्थित है। पीपलूद को मारवाड़ का लघु माउंट आबू कहा जाता है।~ श्री रणछोड़ राय जी का मंदिर -
यह मंदिर बाड़मेर के खेड़ में भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है।
~ आलम जी का मंदिर -
यह मंदिर बाड़मेर के गुढा़मालानी में स्थित है, जो 'घोड़ों के तीर्थ स्थल' के उपनाम से प्रसिद्ध है।
~ मल्लिनाथ जी का मंदिर -
बाड़मेर जिले में तिलवाड़ा गांव में लोकदेवता मल्लीनाथ जी का मंदिर है। यहां पर विशाल 'तिलवाड़ा पशु मेला' लगता है, जिसमें मालानी नस्ल के घोड़े भी बिकने के लिए आते हैं। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी मालानी नस्ल का था।
~ ब्रह्मा जी का मंदिर -
यह मंदिर बाड़मेर के आसोतरा में स्थित है, जिसका निर्माण 1984 में खेतराम जी महाराज ने करवाया था।
~ गरीबनाथ जी का मंदिर -
इस मंदिर की स्थापना जोशी कोमनाथ ने बाड़मेर जिले में शिवपुरी स्थान पर करवाया था।
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राजसमंद जिले के मंदिर -
~ चारभुजा नाथ मंदिर -
यह मंदिर राजसमंद के गठबोर में स्थित है, जो मेवाड़ के चार प्राचीन धामों में से एक है।
• यहां पर वर्ष में दो बार होली मव देवझूलनी एकादशी पर मेले का आयोजन किया जाता है। इसे 'मेवाड़ का वारीनाथ' कहा जाता है।
• यहां पर वर्ष में दो बार होली मव देवझूलनी एकादशी पर मेले का आयोजन किया जाता है। इसे 'मेवाड़ का वारीनाथ' कहा जाता है।
~ श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा -
यह मंदिर राजसमंद जिले में बनास नदी के तट पर है। पहले से श्रीनाथ जी का मंदिर गोवर्धन पर्वत पर था, लेकिन औरंगज़ेब की धर्मविरोधी नीति के कारण मूर्तियों को मेवाड़ लाया गया। महाराणा राजसिंह ने राजसमंद में सिहाड़ नामक स्थान पर इन मूर्तियों को स्थापित करवाया, जो नाथद्वारा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
• इस मंदिर के ऊपर सात रंग की ध्वजा लहराने के कारण इसे 'सात ध्वजा का नाथ' भी कहा जाता है। इसके अलावा इस मंदिर को 'हवेली' भी कहा जाता है, इसलिए यहां की गायिकी 'हवेली संगीत' कहलाती है।
• इस मंदिर के ऊपर सात रंग की ध्वजा लहराने के कारण इसे 'सात ध्वजा का नाथ' भी कहा जाता है। इसके अलावा इस मंदिर को 'हवेली' भी कहा जाता है, इसलिए यहां की गायिकी 'हवेली संगीत' कहलाती है।
~ द्वारिकाधीश मंदिर -
यह मंदिर राजसमंद के कांकरोली में स्थित है। द्वारकाधीश जी की प्रतिमा भी श्रीनाथ जी की प्रतिमा के साथ मेवाड़ लाई गई थी।
अजमेर जिले के मंदिर -
~ ब्रह्मा मंदिर -
यह मंदिर अजमेर के पुष्कर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा कराया गया था। इसका वर्तमान स्वरूप 1809 ई. में गोकुलचंद पारीक ने दिया था। इस मंदिर को ब्रह्मनगरी भी कहा जाता है।
~ सावित्री मंदिर -
यह मंदिर भी पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर के पीछे एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है।
~ वराह मंदिर -
पुष्कर में भगवान विष्णु के वराह अवतार के मंदिर का निर्माण अर्णोराज चौहान ने करवाया था। इस मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर के सवाई जयसिंह ने करवाया था।
~ रंगनाथ जी का मंदिर -
वैष्णव संप्रदाय की रामानुज शाखा के रंगनाथ जी का मंदिर 1844 में सेठ पूरणमल ने करवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी सिंह पर सवार है।
~ महादेव जी का मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण पुष्कर में ग्वालियर के अन्नाजी सिंधिया ने करवाया था।
~ रमा बैकुंठ जी का मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण पुष्कर में 1820 में डीडवाना के सेठ मगनीराम बांगड ने करवाया था।
~ काचरिया मंदिर -
यह मंदिर किशनगढ़ में स्थित है, जो श्रीकृष्ण और राधा जी का मंदिर है।
बांरा जिले के मंदिर -
~ भंडदेवरा शिव मंदिर -
इस मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में मेदवंशीय राजा मलय वर्मा ने बांरा जिले में करवाया था।
• 1162 ई. में इसका जीर्णोद्धार त्रिश वर्मा ने करवाया था।
• यह मंदिर पंचायतन शैली में बना है। इस मंदिर को राजस्थान का मिनी खजुराहो तथा हाड़ौती का खजुराहो कहा जाता है।
• 1162 ई. में इसका जीर्णोद्धार त्रिश वर्मा ने करवाया था।
• यह मंदिर पंचायतन शैली में बना है। इस मंदिर को राजस्थान का मिनी खजुराहो तथा हाड़ौती का खजुराहो कहा जाता है।
~ ब्राह्मणी माता का मंदिर -
बांरा जिले के सौरसेन में बने ब्राह्मणी माता के मंदिर में देवी की पीठ की पूजा की जाती है।
~ फूलदेवरा का शिवालय -
बांरा जिले के अटरू में बने इस मंदिर को 'मामा-भांजा का मंदिर' भी कहा जाता है।
~ गडगच्च देवालय -
बांरा जिले के अटरू में ही बने इस शिव मंदिर को औरंगजेब ने तोप से तुड़वा दिया था।
~ कल्याणराय का मंदिर -
बूंदी की राजमाता राजकुंवर बाई ने रणथंभोर के किले से श्री कल्याण राय जी की मूर्ति लाकर बांरा में मंदिर का निर्माण करवाया था।
~ प्यारे रामजी का मंदिर -
यह बारां जिले में रामानंद संप्रदाय के कुलगुरू स्वामी श्रीरामजी के शिष्य प्यारे रामजी का मंदिर है। यहां रामानंद संप्रदाय श्री गुदड़पंथ पीठ स्थित है।
~ तेली का मंदिर -
यह मंदिर बांरा जिले के श्रीनाल गांव में भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है।
बांसवाड़ा जिले के मंदिर -
~ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर -
बांसवाड़ा के तलवाड़ा के समीप पांचाल जाति की कुलदेवी त्रिपुरा सुंदरी देवी का मंदिर है। इस देवी की पीठिका में श्रीयंत्र अंकित है। इस देवी को तुरताय माता और महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है।
~ घोटिया अंबा मंदिर -
यह मंदिर बांसवाड़ा के बागीदोरा पंचायत समिति में स्थित है। मान्यता के अनुसार पांडवों ने बनवास का कुछ समय यहां गुजरा था।
~ छींछ का ब्रह्मा मंदिर -
बांसवाड़ा के छींछ गांव में ब्रह्मा मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में महारावल जगमाल ने किया था।
~ तलवाड़ा का प्राचीन सूर्य मंदिर -
यह मंदिर बांसवाड़ा के तलवाड़ा स्थान पर 11वीं शताब्दी का बना सूर्य मंदिर है। इसी के पास 12वीं शताब्दी का लक्ष्मी नारायण मंदिर भी है।
यह मंदिर बांसवाड़ा के अर्थूना गांव में लकुलीश संप्रदाय का परमार कालीन शिव मंदिर है।~ मंडलेश्वर शिव मंदिर -
भीलवाड़ा जिले के मंदिर
~ सवाई भोज मंदिर -
यह मंदिर भीलवाड़ा के आसींद में स्थित है, जिसके एक तरफ खारी नदी तथा दूसरी तरफ राठोला तालाब है।
~ बाईसा महारानी मंदिर -
यह मंदिर भीलवाड़ा कस्बे के गंगापुर कस्बे में ग्वालियर के महाराजा महादजी सिंधिया की महारानी गंगाबाई का है।
~ तिलस्वां महादेव मंदिर -
यह मंदिर भीलवाड़ा के मांडलगढ़ में स्थित है। इस मंदिर में कुष्ठ व चर्म रोग से पीड़ित व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ के लिए आते हैं।
~ हरणी महादेव मंदिर -
यह मंदिर भीलवाड़ा में पहाड़ियों के बीच बना है।
भरतपुर जिले के मंदिर -
~ उषा मंदिर -
यह मंदिर भरतपुर के बयाना कस्बे में स्थित है। इसका निर्माण गुर्जर-प्रतिहार राजा लक्ष्मणसेन की पत्नी चित्रलेखा ने करवाया था। 1224 ई. में दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने इसे तुड़वाकर मस्जिद में बदल दिया था।
भरतपुर शहर के बीच बने इस लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाराजा बलदेव सिंह ने करवाया था। यह भारत का एकमात्र लक्ष्मण मंदिर है। लक्ष्मण जी को भरतपुर के जाट राजवंश के कुल देवता माना जाता है।