Jaisalmer Durg - जैसलमेर का किला
~ इस दुर्ग की नींव 12 जुलाई 1155 को रावल जैसल ने इंसाल ऋषि की सलाह से रखी थी। इस दुर्ग के कुछ भागों का निर्माण करवाने के बाद रावल जैसल की मृत्यु हो गई। इसके बाद जैसल के पुत्र शालिवाहन ने किले के अधिकतर हिस्सों का निर्माण करवाया। यह दुर्ग धान्वन श्रेणी के किलों के अंतर्गत आता है।~ यह दुर्ग त्रिकूट पहाड़ी पर बना है, इसलिए इसे त्रिकूटगढ़ भी कहते हैं। इसके अलावा इसे उत्तर भड़ किंवाड़, सोनगिरि, सोनारगढ़, स्वर्णगिरि, राजस्थान का अंडमान, रेगिस्तान का गुलाब तथा गलियों का दुर्ग भी कहा जाता है।
~ इस दुर्ग की स्थिति को देखकर अबुल फजल ने कहा था कि "इस दुर्ग तक पहुंचने के लिए पत्थर की टांगे होनी चाहिए।"
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~ जैसलमेर का किला चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद दूसरा सबसे बड़ा आवासीय दुर्ग (Living Fort) है। इस दुर्ग के चारों ओर घाघरानुमा दोहरा परकोटा पत्थरों से बना है, जिसे कमरकोट या पाड़ा भी कहते हैं।~ इस दुर्ग का निर्माण केवल पत्थरों से किया गया है, जिसमें चूने की जगह जिप्सम तथा लोहे का प्रयोग किया गया है।
~ वर्ष 2005 में जनवरी माह में इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया और वर्ष 2009 में इस पर पांच रुपए का डाक टिकट भी जारी किया गया था।
जैसलमेर दुर्ग के दर्शनीय स्थल -
~ जैसलू कुआं - पौराणिक मान्यता के अनुसार इस कुएं का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से किया था।~ सर्वोत्तम विलास - इसका निर्माण महारावल अखैसिंह ने करवाया था, जिसे शीशमहल भी कहा जाता है।
~ रंगमहल व मोतीमहल - इसका निर्माण मूलराज द्वितीय ने करवाया था।
~ बादल विलास - इस महल का निर्माण 1884 ई. में सिलावटों ने करवाकर महारावल वैरिशाल सिंह को भेंट किया था। यह महल पांच मंजिला है, जिसकी नीचे की चार मंजिल वर्गाकार तथा पांचवी मंजिल गुंबदाकार है।
~ अन्य महल गज महल, जवाहर विलास महल आदि है।
जैसलमेर दुर्ग के मंदिर -
~ लक्ष्मी नारायण मंदिर - इस मंदिर का निर्माण 1437 ई. में महारावल वैरिशाल सिंह ने करवाया था। जैसलमेर रियासत के महारावल श्री लक्ष्मीनारायण जी को जैसलमेर के शासक तथा स्वयं को उनका दीवान मानते थे।~ स्वांगिया देवी का मंदिर - स्वांगिया देवी भाटी शासकों की कुल देवी है। इस मंदिर को आईनाथ का मंदिर भी कहते हैं।
~ जिनभद्र सुरी ग्रंथ भंडार - यहां प्राचीनतम जैन पांडुलिपि हस्तलिखित ग्रंथों का विशाल भंडार है, जिनकी रचना जिनभद्र सूरी ने की थी।
जैसलमेर दुर्ग के दरवाजे -
~ अक्षय पोल (मुख्य दरवाजा) इसके बाद सूरज पोल, भूतापोल (गणेशपोल) तथा हवापोल (रंगपोल)जैसलमेर दुर्ग के ढा़ई साके -
~ इतिहासकार नंदकिशोर के अनुसार पहला साका 1294 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। इस समय महारावल मूलराज जैसलमेर के शासक थे।~ दूसरा साका 1357 में फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण के समय हुआ। इस समय रावल दूदा शासक थे।
~ इस दुर्ग का तीसरा ढाई साका 1550 में हुआ। इस समय कंधार के अमीर अली ने विश्वासघात कर किले पर कब्जा करने की कोशिश की थी। इस युद्ध में राजपूत पुरुषों ने तो केसरिया किया, लेकिन महिलाओं ने जौहर नहीं किया था। इस युद्ध में भाटियों की विजय तो हुई, लेकिन शासक महारावल लूणकरण वीरगति को प्राप्त हो गये।
जैसलमेर दुर्ग के बारे में कहा गया है -
गढ़ दिल्ली गढ़ आगरो, अधगढ़ बीकानेर।
भलो चिणायो भाटियों, सिरै तो जैसलमेर।।