मानव विकास के क्रमिक चरण- Stages of Human Development

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मानव विकास के क्रमिक चरण- Stages of Human Development

Hello Friends, इस पोस्ट में हम मानव के क्रमिक विकास को संक्षेप में देखेंगे, ताकि आप इस लंबे समयांतराल की बेसिक जानकारी प्राप्त कर सकें। इस पोस्ट के PDF Notes की लिंक नीचे दी गई है।

Stages of Human Development

आदिमानव से शुरूआत होकर आधुनिकता की ओर -

• अधिकांश विद्वानों का मानना है कि एक लाख वर्ष से पहले ऐसे प्राणियों का जन्म हुआ, जो मानव के समान था। इन प्राणियों को प्राईमेट्स (नर वानर) कहा जाता है। यह प्राणी धीरे-धीरे वृक्षों से उतरे और अपने पिछले पैरों पर खड़े होकर इन्होंने चलना सीखा और धीरे-धीरे ये धरती पर ही रहने लगे।
• प्राईमेट्स का अर्थ मनुष्य जैसे वानर होते हैं। इसमें बंदरों लंगूरों, वनमानुषों और इनके जैसे स्तनधारी जीवो को शामिल किया जाता है। इन प्राणियों की उत्पत्ति सबसे पहले अफ़्रीका महाद्वीप में हुई और उसके बाद धीरे धीरे एशिया और यूरोप में फैल गए।

पुरापाषाणकाल (Paleolithic):

शिकार और खाद्य पदार्थों का संग्रहण -
• मानवों की उत्पत्ति का समय लगभग प्लीस्टोसीन काल की शुरुआत के समय माना जाता है। आदिमानव पत्थर के अनगढ़त और परिष्कृत औजारों का प्रयोग करते थे।
• इस काल को आखेटक एवं खाद्य संग्राहक काल के रूप में जाना जाता है। इस काल में मानव का जीवन पूरी तरह शिकार और पेड़ पौधों पर निर्भर था।
पुरापाषाण काल को तीन भागों में बांटा गया है- 1. निम्न पुरापाषाण काल, 2. मध्य पुरापाषाण काल, 3. उच्च पुरापाषाण काल।

निम्न पुरापाषाण काल-

• आरंभिक या निम्न पुरापाषाण काल के स्थल पाकिस्तान में स्थित पंजाब की सोहन नदी की घाटी में पाए गए हैं। इसके अलावा इस काल के औजार उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बेलन नदी घाटी में और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास भीमबेटका की गुफाओं में औजार मिले हैं।
• नर्मदा घाटी के हथनोरा (होशंगाबाद) से एक मानव की खोपड़ी मिली है, इस काल का भारत में मिलने वाला एकमात्र मानव जीवाश्म है।

मध्य पुरापाषाण काल-

औजारों के फलकों की संख्या बढ़ जाने के कारण इस काल को फलक संस्कृति भी कहा जाता है। मध्य पुरापाषाण काल में पत्थर की पपड़ी से बनी वस्तुओं का उपयोग किया जाने लगा।

उच्च पुरापाषाण काल-

इस काल में औजारों को ब्लेड की तरह तीखा बनाया जाने लगा। उच्च पुरापाषाण काल में ही आधुनिक मानव होमोसेपियंस का उदय हुआ था।
Homosapien

पुरापाषाणकाल के प्रमुख स्थल-

~ भीमबेटका, आदमगढ़, ~हथनोरा (मध्यप्रदेश)
~ लोहंदानाला-बेलनघाटी(उ.प्र.)
~ नेवासा,चिरकी(महाराष्ट्र)
~ नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश)
~ पल्लवरम,अतिरमपक्कम(तमिलनाडु)

मध्यपाषाण काल(Mesolithic):

शिकार और पशुपालक-
• भारत में मध्य पाषाण काल के बारे में सबसे पहले जानकारी सी.एल.कालाईल ने दी, जब उन्होंने 1867 ई. में विंध्यन क्षेत्र से लघु पाषाण उपकरणों को खोजा। मध्य पाषाण काल के लोग अपना जीवनयापन शिकार, मछली पकड़कर और खाद्य वस्तुओं का संग्रह करके करते थे। मध्य पाषाण काल में मानव द्वारा छोटे आकार के पत्थरों से बने औजारों का प्रयोग होने लगा था।
• भारत में मानव के अस्थिपंजर मध्य पाषाण काल से ही मिलने लगे थे। राजस्थान में भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी के तट पर बागोर भारत का सबसे बड़ा मध्य पाषाणिक स्थल है।
मानव द्वारा सबसे पहले पालतू बनाया जाने वाला पशु कुत्ता था, जिसे मध्य पाषाण काल में ही पालतू बनाया जाने लगा।

मध्यपाषाणकाल के प्रमुख स्थल-

~ आदमगढ़, भीमबेटका,पंचमढी,बोधोर(मध्यप्रदेश)
~ बागोर, तिलवाड़ा(राजस्थान)
~ महदहा,सराय नाहरराय(उ.प्र.)
~ पायसरा(बिहार)

नवपाषाणकाल (Neolithic):

खाद्य‌-उत्पादक -
• यूनानी भाषा के Neo शब्द का अर्थ नव या नवीन होने के कारण इस काल को नवपाषाण काल कहा जाता है। भारत में नवपाषाण काल से संबंधित खोज सबसे पहले Dr. प्राईमरोज ने शुरू की थी, जब इन्होंने 1842 ई. में कर्नाटक के लिंगसुगुर स्थल‌ से उपकरण खोजें।
नवपाषाण काल की प्राचीनतम बस्ती पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत के मेहरगढ़ में मिली है और यही से कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं।
इलाहाबाद में स्थित कोल्डिहवा से सबसे पहले चावल के साक्ष्य मिले हैं। कृषि, पहिया और मिट्टी के बर्तन नवपाषाण काल में ही अस्तित्व में आये।
• भारत में नवपाषाण काल के हड्डियों से बने औजार कश्मीर और चिरांद (बिहार) से बड़ी संख्या में मिलें हैं। बुर्जहोम (कश्मीर) से कब्रों में अपने मालिकों के साथ पालतू कुत्तों को दफनाने के साक्ष्य मिले हैं।
• नवपाषाण काल की जोर्वें संस्कृति एक ग्रामीण संस्कृति थी और इसकी दायमाबाद और इनाम गांव बस्तियों में नगरीकरण की प्रक्रिया सबसे पहले शुरू हुई।
पिक्लीहल(कर्नाटक) में राख के ढेर और निवास स्थान के साक्ष्य मिले हैं, जिससे यह पता चलता है कि नवपाषाण काल के लोग स्थायी रुप से घर बनाकर रहने लगे थे।
• नवपाषाण काल में गेहूं और जौ की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य भी मिले हैं।

नवपाषाणिक काल के स्थल-

~ पिक्लिहल,संगनकल्लू,हल्लूर,ब्रह्मगिरी,कोडेकल,टेक्कलकोटा,मास्की - कर्नाटक
~ पैय्यमपल्ली - तमिलनाडु
~ उतनूर - आन्ध्रप्रदेश
~ बुर्जहोम,गुफ्कराल - कश्मीर
~ कोल्डिहवा,महदहा,चोपानीमांडो- उत्तर प्रदेश
~ चिरांद - बिहार
~ दाओजली,सारूतारू - असम
~ मेहरगढ़ - बलुचिस्तान (पाकिस्तान)

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